लखीमपुर जिले में 13 साल की बच्ची के साथ दरिंदगी के बाद उसकी हत्या कर दी गई। फोन पर भास्कर से बच्ची के पिता ने कहा कि दो-चार दिन में ही हरियाणा कमाने के लिए जाना था, लेकिन ये घटना हो गई। कोरोना के चलते लखनऊ से लौटा था।

पिता अपनी बेटी का बचपना याद करते हुए बार-बार भावुक हो जाते। कहने लगे कि उसे दो चोटी बांधना बड़ा पसंद था। सहेलियों के साथ खूब खेलती थी। पता नहीं हमारे परिवार को किसकी नजर लग गयी। हमारी तो किसी से रंजिश भी नहीं थी। मां को होश तक नहीं है। बस इतना ही कह पा रही है कि मेरी इकलौती बेटी थी। उसे मैं इतना तो पढ़ाना ही चाहती थी कि वह अपने हाथों से दस्तखत कर ले। अब मेरा ख्याल कौन रखेगा?
मां ने कहा- बेटी ने बनाया था खाना, साथ में खाया भी था
मां ने रोते हुए बताया कि दिन में बिटिया ने खाना बनाया। दोनों ने साथ में खाया था। उसके बाद वह कामकाज में उलझ गई और हम लोग खेत चले गए। लौटे तो बिटिया घर में दिखी नहीं तो हमने अपनी बहू से पूछा। उसने कहा हम तो बच्चों के साथ सो रहे थे। हमें नहीं मालूम है।

पिता ने हमें बताया- कुछ देर इंतजार के बाद शुक्रवार दोपहर दो बजे हमने बेटी को ढूंढना शुरू किया। गन्ने के खेत की तरफ भी गए तो जो दो लोग पकड़े गए हैं, वह मेढ़ पर बैठे थे। दो बार हम उधर गए और उन लोगों ने कहा इधर लड़की नहीं आई है। फिर हमने खेत में जाकर देखा तो बेटी की आंखें फोड़ दी गई थीं, जुबान भी काटी गई थी। पुलिस ने हम लोगों के बताने पर दो संदिग्धों को पकड़ लिया।
पिता रोते-रोते कहने लगे- जिन दो लोगों को पकड़ा गया है, मुझे नहीं पता कि वह सही आरोपी हैं या नहीं। वह संदिग्ध लगे तो हमने उन्हें बताया। बाकी पुलिस आरोपियों को पकड़ कर मुझे दिखाए और हमें इंसाफ के नाम पर सिर्फ आरोपियों की फांसी ही चाहिए। मेरे पुरखे इस गांव में रहते थे। हमने इस गांव में जन्म लिया, लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई। यह पहली बार हुआ और मेरी बेटी के साथ ही हुआ।
महामारी के चलते लखनऊ से गांव लौट आया था परिवार
पिता ने बताया कि बहुत थोड़ी-बहुत जमीन है। जिससे परिवार का खर्च नहीं चलता है। जिसकी वजह से हम बाहर काम करने जाते हैं। पहले लखनऊ में मजदूरी कर रहे थे। कोरोना की वजह से लौट आए। तब से यहीं थे। किसी तरह गुजर-बसर हो रही थी। अब एक ठेकेदार से दस हजार रुपए बयाना लिया था। 20 अगस्त को परिवार समेत हरियाणा में एक ईंट भट्ठे पर जाना था। वहां ईंट पथाई का काम था। इसी सब की तैयारी चल रही थी कि ये सबकुछ हो गया। परिवार में पत्नी, दो बेटे, एक बहू के अलावा इकलौती 13 साल की बिटिया थी।
मां ने कहा कि, हम लोग जहां भी काम करने जाते हैं, वहां बिटिया भी साथ होती थी। कोई प्राइमरी स्कूल मिला तो उसी में डाल देते थे। हम चाहते थे कि कम से कम दस्तखत करने लायक तो पढ़ाई कर ही ले, क्योंकि आगे पढ़ाने की हमारी हैसियत नहीं थी। मेरा एक बेटा भी दस्तखत कर लेता है। मेरे दोनों बेटे भी मजदूरी करते हैं। वह भी अलग-अलग जगहों पर काम करने जाते थे। इस बार हम सब लोग साथ में हरियाणा काम करने जा रहे थे।

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