ईरान के हाथों में है दुनिया की इकोनॉमी को हिलाने की ताकत!

अमरीकी हमले में ईरानी कमांडर के मारे जाने के बाद ईरान ने बदला लेने की बात कही है। साथ ही स्ट्रेट ऑफ होर्मुज ( Strait of Hormuz ) को रोकने की बात कह डाली है। स्ट्रेट ऑफ होर्मुज रोकने का मतलब है वर्ल्ड इकोनॉमी ( World Economy ) की नब्ज को दबाना। जिससे दुनिया के सभी देशों की सांस उखडऩी शुरू हो जाएगी। भारत जैसी बड़ी इकोकॉमी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान होगा। अब सवाल यह खड़े हो गए हैं कि आखिर स्ट्रेट ऑफ होर्मुज है क्या? यह दुनिया की इकोनॉमी की लाइफ लाइन कैसे है? क्या अमरीका ने ईरान के खिलाफ हवाई हमला कर बड़ी गलती तो नहीं कर दी? भारत में इसका क्या असर देखने को मिलेगा?

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क्या है स्ट्रेट ऑफ होर्मुज? 
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज पश्चिम एशिया की एक प्रमुख जलसंधि है, जो ईरान के दक्षिण में फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से अलग करता है। इसके दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात और ओमान का मुसन्दम नामक बहिक्षेत्र हैं। तेल के निर्यात की दृष्टि से यह स्ट्रेट बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इराक, कतर तथा ईरान जैसे देशों का तेल निर्यात यहीं से होता है। अपने सबसे कम चौड़े स्थान पर इसके दोनों तटों में 39 किलोमीटर की दूरी है। यह ईरान देश को ओमान देश से अलग करती है।
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क्यों है दुनिया की इकोनॉमिक लाइफ लाइन?
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को इकोनॉमिक लाइफ लाइन क्यों कहा जाता है, इसके कई कारण है। एनालिटिक्स फर्म वोर्टेक्सा के आंकड़ों के मुताबिक इस समुद्री रास्ते से दुनिया में कच्चे तेल का लगभग पांचवां हिस्सा 17.4 मिलियन प्रति दिन बैरल यहीं से गुजरता है। जबकि 2018 में दुनिया में कच्चे तेल की खपत लगभग 100 मिलियन बीपीडी थी। ओपेक के सदस्य सऊदी अरब, ईरान, यूएई, कुवैत और इराक स्ट्रेट होर्मुज से अपने अधिकांश कच्चे तेल का निर्यात करते हैं। कतर, दुनिया का सबसे बड़ा तरलीकृत प्राकृतिक गैस निर्यातक देश है। सभी लिक्विड नैचुरल गैस को कतर इसी रास्ते से एक्सपोर्ट करता है।
कई बार इस रास्ते को लेकर टेंशन होने के कारण संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने अन्य मार्गों को खोजने की मांग की है, जिसमें अधिक तेल पाइपलाइनों का निर्माण किया जा सके। ऐसे में अगर ईरान यह रास्ता बंद कर देता है तो दुनिया में कच्चे तेल की सप्लाई बंद हो जाएगी। जिसकी वजह से इंटरनेशनल मार्केट में ऑयल की कीमत बढ़ेंगी, जिसका असर दुनिया की सभी इकोनॉमी पर पड़ेगा। आपको बता दें कि ओपेक देशों में सबसे ज्यादा तेल का उत्पादन इराक करता है और यह रोजाना 4.7 मिलियन बैरल तेल निकालता है। सऊदी अरब, कुवैत और ईरान मिलकर रोजाना 15 मिलियन तेल का उत्पादन करते हैं।
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क्या अमरीका ने गलती तो नहीं कर दी
अगला सवाल यह भी है कि क्या अमरीका ने हवाई हमला कर ईरानी कमांडर को मारकर बड़ी गलती तो नहीं कर दी है? यह बात इसलिए कही जा रही है कि दुनिया मौजूदा समय में आर्थिक मंदी के चपेट में है। ऐसे में ईरान कोई एक्शन लेता है और स्ट्रेट ऑफ होमुर्ज से सप्लाई को रोकता है तो दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें आसमान की ओर पहुंच जाएंगी। जानकारों की मानें अगर ऐसा होता है तो कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है। जिससे वैश्विक आर्थिक मंदी को सपोर्ट मिलेगा। साथ ही दुनिया की मंदी को खत्म करने के लिए जिस स्पीड की जरुरत है वो रुक जाएगी। जिसका हल्का सा ट्रेलर पूरी दुनिया शुक्रवार को देखा। अमरीकी हमले की खबर मिलते ही कच्चे तेल की कीमतें 70 डॉलर के पार चली गई थी। अमरीकी और एशियाई शेयर बाजार धड़ाम हो गए थे। इसका असर भारतीय बाजारों में भी देखने को मिला था।
भारत पर क्या असर
भारत में घरेलू तेल की कीमतें पहले ही ऊंचाई पर हैं। भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है। इराक, भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय के अनुसार इराक ने अप्रैल 2018 और मार्च 2019 के दौरान भारत को 4.661 करोड़ टन कच्चा तेल बेचा था। यह वित्त वर्ष 2017-18 में की गई आपूर्ति 4.574 करोड़ टन से दो फीसदी अधिक है। खास बात तो ये है कि भारत को कच्चे तेल की सप्लाई इसी स्ट्रेट ऑफ होमुर्ज से होती है। अगर यह रास्ता बाधित होगा तो कच्चा तेल महंगा होगा। जिसकी वजह से देश में पेट्रोल और डीजल के दाम दोगुनी तेजी से बढ़ेंगे। आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे भारत को खर्च में कटौती करनी होगी। जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है।

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