6 जून 1981 को बिहार के मानसी स्टेशन से एक ट्रेन सहरसा जा रही थी। ट्रेन में 1 हजार से ज्यादा लोग सवार थे। रास्ते में बारिश होने लगी तो यात्रियों ने खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए और ट्रेन के अंदर ही सफर खत्म होने का इंतजार करने लगे। ट्रेन बागमती नदी के पुल से गुजर रही थी तभी अचानक से एक झटका लगा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ट्रेन के 7 डिब्बे पुल से नदी में जा गिरे।

बरसात की वजह से लबालब भरी बागमती ने सातों डिब्बों को अपने अंदर समा लिया। मरने वालों की सही संख्या आज तक पता नहीं है। कुछ लोग दबकर मर गए तो कुछ लोग डूबकर। जिन्हें तैरना आता था वे ट्रेन से बाहर ही नहीं आ पाए और जो बाहर आ पाए वो नदी के बहाव में बह गए। यानी मौत से बचने का कोई रास्ता ही नहीं था।

ट्रेन नदी में क्यों गिरी इसके पीछे 2 वजहें बताई जाती हैं। पहली ये कि ट्रेन के सामने गाय या भैंस आ गई थी, जिसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक लगाए। स्पीड में एकदम लगाए गए ब्रेक की वजह से डिब्बों का संतुलन बिगड़ा और डिब्बे नदी में गिर गए। दूसरी वजह ये कि ट्रेन के खिड़की-दरवाजे सब बंद थे, इसलिए तेज आंधी- तूफान का पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और ट्रेन नदी में गिर गई।

हादसे में कितने लोग मरे इसका भी कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। रेलवे ने बताया कि 500 लोगों की मौत हुई है। बाद में मरने वालों की संख्या 1 से 3 हजार बताई गई। विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि ये ट्रेन पैसेंजर थी, इसलिए ट्रेन में यात्री भी ज्यादा सवार थे। यानी मरने वालों का आंकड़ा भी ज्यादा ही होगा।

हादसे के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया। गोताखोरों की मदद से 286 लाशें ही नदी में से बाहर आ पाईं। सैकड़ों लोगों की लाश का आज तक कोई पता नहीं चला।

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