58 साल में चौथी बार एलएसी पर भारतीय जवान शहीद हुए, 70 साल में बतौर पीएम मोदी सबसे ज्यादा 5 बार चीन गए

भारत और चीन के बीच विवाद का इतिहास जमे हुए पानी की तरह है, जिस पर बस उम्मीद फिसलती है, नतीजे नहीं।

 चीन ने 58 साल में चौथी बार भारत के साथ बड़ा विश्वासघात किया है। वजह- फिर वही सीमा विवाद, जो 4056 किमी लंबी है और यह हिमालय रेंज में पश्चिम से पूरब की ओर जाती है। 



दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है। जहां सबसे मुश्किल हालातों में सैनिक तैनात रहते हैं। जहां कई जगहों पर सालभर तापमन शून्य से नीचे रहता है।
यह दुनिया की ऐसी सबसे बड़ी सीमा भी मानी जाती है, 

पूरी तरह से मैपिंग नहीं हो सकी है। भारत मैकमोहन लाइन को वास्तविक सीमा मानता है, जबकि चीन इसे सीमा नहीं मानता। इसी लाइन को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच जंग भी हुई थी। 

क्योंकि चीन ने लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत कई जगहों पर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था। हालांकि चीन का यह कब्जा 58 साल बाद आज भी कायम है। जहां तक चीन का कब्जा है,



वहां तक की सीमा लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल(एलएसी) या वास्तविक नियंत्रण रेखा के नाम से जाना जाता है।
गलवान की स्थिति क्या है?
1962 में भी चीन ने यहां गोरखा पोस्ट पर हमला किया था
भारत के 20 सैनिक जिस इलाके में शहीद हुए हैं, वह इलाका लद्दाख में है। नाम- गलवान घाटी है। गलवान घाटी अक्साई चिन क्षेत्र में आता है। इसके पश्चिम इलाके पर 1956 से चीन अपने कब्जे का दावा करता आ रहा है।

1960 में अचानक गलवान नदी के पश्चिमी इलाके, आसपास की पहाड़ियों और श्योक नदी घाटी पर चीन अपना दावा करने लगा। लेकिन भारत लगातार कहता रहा है कि अक्साई चिन उसका इलाका है। इसके बाद ही 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ। तब भी चीन ने यहां गोरखा पोस्ट पर हमला किया था।


दरअसल, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने इस गलवान पोस्ट पर भारी गोलीबारी और बमबारी के लिए एक बटालियन को भेजा था। इस दौरान यहां 33 भारतीय मारे गए थे, कई कंपनी कमांडर और अन्य लोगों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावों वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

मौजूद विवाद के पीछे की दो बड़ी वजहें क्या हैं?
आर्थिक वजह

दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं 5 महीनों से कोरोनावायरस के बाद से मंदी के दौर से गुजर रही हैं। चीन, अमेरिका, भारत, यूरोपीय देशों की जीडीपी गिरी है। एक्सपर्ट्स की इस दौर की तुलना 1930 के 'द ग्रेट डिप्रेशन' से भी कर रहे हैं।



इस सब के बीच 17 अप्रैल को भारत सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया। सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के नियमों को पड़ोसियों के लिए और सख्त कर दिया। इसका सबसे सबसे ज्यादा चीन पर असर हुआ है।
कोरोनावायरस

हाल ही में 194 सदस्य देशों वाली वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया गया कि कोरोना मामले की जांच होनी चाहिए। दुनिया भर में नुकसान पहुंचाने वाला कोरोनावायरस कहां से शुरू हुआ।

 ये असेंबली विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की प्रमुख प्रमुख विंग है। भारत ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
भारत-चीन के बीच 1962 में जंग की वजह क्या थी?
चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत हमला बोल दिया था। बहाना- विवादित हिमालय सीमा ही थी। लेकिन, मुख्य वजह कुछ और मुद्दे भी थे, जिनमें सबसे प्रमुख 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को शरण देना था।


चीन ने लद्दाख के चुशूल में रेजांग-ला और अरुणाचल के तवांग में भारतीय जमीनों पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही चीन ने भारत पर चार मोर्चों पर एक साथ हमला किया। यह मोर्चे- लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल थे।

इस जंग में चीन को जीत मिली थी। हालांकि, तब भारत युद्ध के लिए तैयार ही नहीं था। चीन ने एक महीने बाद 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

एलएसी पर कितने साल बाद सैनिक शहीद हुए?
दोनों देशों की सेनाएं पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख में आमने-सामने हैं। पिछले महीने दोनों देशों के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग और सिक्किम के नाकुला में हाथापाई हुई थी।


इससे पहले भारत-चीन सीमा पर 1975 में यानी 45 साल पहले किसी सैनिक की एलएसी पर जान गई थी। तब भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने हमला किया था।

1962 के बाद दोनों देशों में कौन से बड़े विवाद हुए?
1967- नाथु ला दर्रे के पास टकराव हुआ

1967 का टकराव तब शुरू हुआ, जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर की मैपिंग कर डाली। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है


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